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कथा नशा की काव्य समीक्षा




कथा नशा की काव्य समीक्षा

रुतबे का गुरूर नशा
रुतबा ,दौलत हो या
शोहरत ताकत का
इंसानों की दुनियां में 
नफ़रत फासले की
जमीं जज्बात।।

खुदा की कायनात में
ऊंच नीच बुरूजुआ
बादशाह गुलामी के 
जज्बात।।

अमीरी अय्याशी नशा
इंसानों का खून पीता 
इंसान शराब शाकी पैमाने
मैखने हो जाते बेकार।।

कभी जमींदार की मार
ताकत दौलत का चाबुक
इंसान से इंसान ही खाता
मार ग़रीबी की मजबूरी दमन
दर्द की मजलूम की आह।।

दर्द इंसान की किस्मत
कहूं या खुद खुदा बन बैठा
इंसान हद के गुजरते गुरूर
नशे का नाज़।।

ईश्वरी गर नशा गुरूर है
बीर मजबूरी में घुट घुट
कर जीने का नाम।

घुटने टेक देता इंसान
मकसद का मिलता
नहीं जब कोई राह
खुद के वसूल ईमान 
का सौदा करने को
सब कुछ जज़्ब कर लेता
इंसान।।

ईश्वरी जमींदार के गुरूर
किरदार बीर शोषित 
समाज का भविष्य वर्तमान।।

संगत सोहबत में बीर पर
जमीदारी के गुरूर धौस
का नशा हो जाता सवार।।

जब टूटता नशा खुद को
बीर पाता गंवार।।

वीर शेर की खाल ओढ़
शेर बनने के स्वांग में 
अमीरी अय्याशी के छद्म
नशे का लम्हे भर के लिए 
शिकार। ।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर



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1 Comments

Sachin dev

15-Nov-2022 02:58 PM

Nice

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